भारतीय संविधान के 4 एकात्मक लक्षण लिखिए

दोस्तों, 15 अगस्त आने वाला है और 15 अगस्त के ही दिन हमारा भारत ब्रिटिश साम्राज्य से आधिकारिक तौर पर आजाद हुआ था, और 26 नवंबर 1949 को  आजाद भारत का संविधान अपनाया गया था, जिसे 26 जनवरी 1950 को पूरे भारत पर लागू कर दिया गया था।

लेकिन भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हमारे भारतीय संविधान में विभिन्न प्रकार के एकात्मक लक्षण भी है, जो मूल रूप से  एकत्र शक्तियां है, यानी कि यहां पर शक्तियों का केंद्रीकरण किया गया है।

अब आप सोच रहे होंगे कि भारतीय संविधान में शक्तियों का केंद्रीकरण कहां किया गया है?  तो आज हम आपको यही बताएंगे कि भारतीय संविधान में शक्तियों का केंद्रीकरण कहां किया गया है और इसके हम आपको चार उदाहरण भी देंगे। इसके अलावा विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में पूछा जाता है कि Bhartiya samvidhaan ke 4 ekatmak lakshan likhiye. इसी सवाल का जवाब आज हम आपको विस्तार से देंगे। तो चलिए शुरू करते है और जानते हैं कि भारतीय संविधान के चार एकात्मक लक्षण कौन से हैं-

भारतीय संविधान में एकात्मक व्यवस्था के मूलभूत लक्षण

जैसा कि हमने बताया था कि आज हम आपको बताने वाले हैं कि Bhartiya samvidhaan ke 4 ekatmak lakshan likhiye, तो सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण कौन-कौन से हैं, जो मूल रूप से यह प्रदर्शित करते हैं कि भारत की शक्तियां मूल रूप से केंद्रीकृत की गई है, इसके पश्चात इनमें से किन्ही 4 के बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे-

  1. भारत की एकीकृत न्याय व्यवस्था
  2. भारत की इकहरी नागरिकता
  3. भारत की संघात्मक शक्तियों का बंटवारा मूल रूप से केंद्र के पक्ष में
  4. केंद्र सरकार को राज्य की सीमा में परिवर्तन करने का अधिकार
  5. राज्यपालों की राज्यों में नियुक्ति
  6. राज्य की सूची में केंद्र को कानून बनाने का अधिकार
  7. केंद्र सरकार के द्वारा संविधान संशोधन सरलता से
  8. संकटकाल में संपूर्ण शक्तियों का केंद्रीकरण
  9. राज्य विधान मंडल के द्वारा पारित किए गए कानून को राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए राज्यपालों के द्वारा आरक्षित किए जाने का अधिकार
  10. संघ व राज्य  के लिए एक ही संविधान

भारतीय संविधान के 4 एकात्मक लक्षण लिखिए

sanghatmak aur ekatmak shasan mein antar bataiye

1. भारत की इकहरी नागरिकता

आपको पता होगा कि भारत में इकहरी नागरिकता का प्रावधान है, यानी कि एक भारतीय व्यक्ति भारतीय रहते हुए किसी भी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण नहीं कर सकता है।

यदि एक व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करना चाहता है तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी, या फिर यदि कोई दूसरे देश का व्यक्ति भारत की नागरिकता प्राप्त करना चाहता है तो उसे अपने देश की नागरिकता छोड़कर भारत की नागरिकता प्राप्त करनी होगी। कोई भी व्यक्ति दो देश की नागरिकता एक साथ नहीं रख सकता है।

इसका मूल उद्देश्य यह है कि यदि किसी  भारतीय व्यक्ति  के पास केवल और केवल भारत की नागरिकता होगी, तो वह व्यक्ति यह मानकर चलेगा कि उसके पास रहने के लिए केवल और केवल भारत देश ही है, और वह भारत की संपन्नता और सशक्तिकरण के लिए पूरे मन से प्रयास करेगा। क्योंकि यह देश उसे अपना देश लगेगा। वह इस देश में रहते हुए किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण नहीं कर पाएगा, और यदि एक व्यक्ति भारतीय कहलाना चाहता है तो उसे भारतीय बने रहने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे।

लेकिन यह एक प्रकार से पिंजरा भी नहीं है इसलिए यदि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिकता नहीं प्राप्त करना चाहता है और भारतीय नहीं बने रहना चाहता है  तुरंत ही भारतीय नागरिकता के स्थान पर  अन्य किसी देश की नागरिकता स्वीकार कर सकता है।  यह एक प्रकार से  भारतीय संविधान का एकात्मक लक्षण है, जहां पर  मूल रूप से किसी भी व्यक्ति को दोहरी नागरिकता का  विकल्प नहीं दिया गया है।

2. भारत की संघात्मक शक्तियों का बंटवारा मूल रूप से केंद्र के पक्ष में

भारत में मूल रूप से धारणा यह है कि लोकतांत्रिक भारत में  जहां पर अच्छे राजनेता व अच्छे नौकरशाह है, वहीं पर कुछ ऐसे राजनेता और नौकरशाह भी मौजूद है जो भारत को तोड़ने पर और भारत का बंटवारा करने पर ही प्रसन्न रहते हैं, और भारत को नुकसान पहुंचा कर ही खुश रहते हैं।

इसलिए भारत की  एकता और अखंडता पर यदि किसी भी प्रकार से कोई खतरा आता है, या फिर कोई राज्य सरकार किसी भी राज्य को भारत से अलग करने के लिए या भारतीय राज्य में निवास करने वाले किसी भी समुदाय विशेष को भारतीय केंद्र सरकार के विरोध में हथियार उठाने को प्रेरित करती है, तो इसके जवाब में भारत की संघात्मक शक्तियों का बंटवारा मूल रूप से केंद्र की ओर होता हुआ नजर आता है। जहां भारतीय केंद्र सरकार किसी भी राज्य सरकार को तुरंत गिराने का काम कर सकती है, और किसी भी राज्य में मूल रूप से केंद्र सरकार अपना अधिपत्य लगभग 6 महीनों के लिए स्थापित कर सकती है।

न केवल विरोध, बल्कि अन्य कई कारणों से भी यदि कोई राज्य भारत देश से अलग होने की साजिश में संलिप्त होता है,  इसके जवाब में भारतीय केंद्र सरकार के पास केंद्रीकृत शक्ति आ जाती है जो भारतीय संविधान  का  एकात्मक  लक्षण है।

3. राज्यपालों की राज्य में नियुक्ति

आपने देखा होगा कि भारत के  सभी राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति की जाती है, और सभी राज्यपाल मूल रूप से उस राज्य विशेष के नागरिक नहीं होते हैं,  जिन राज्यों के राज्यपाल बने हैं।  क्योंकि ऐसा माना जाता है कि राज्यपाल के रूप में केंद्र सरकार भारत के सभी राज्यों की कार्यशैली, कार्यपध्दती, और उनकी मंशा पर नजर रखती है।  ताकि कभी भी कोई ऐसी व्यवस्था या परिस्थिति उत्पन्न ना हो जो संभाली ना जा सके।

यदि किसी भी कारणवश किसी राज्य सरकार के द्वारा कोई ऐसा कानून पारित किया जाता है जो भारतीय संविधान के विरोध में है, और भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देता है, तो राज्यपाल सबसे पहले केंद्र सरकार को और राष्ट्रपति को इसके बारे में सूचित करता है।

साथ ही यदि किसी राज्य में न्याय व्यवस्था और कानून व्यवस्था पूरी तरह से शिथिल हो जाती है, तो इसके जवाब में भी राजस्थान सरकार को उसे राज्य में राष्ट्रपति शासन के निर्देश देता है। यह भारत के संविधान का एकात्मक लक्षण दर्शाता है, जहां भारत के संविधान की शक्तियां  केंद्रीकृत तौर पर  किसी एक संस्था के पास  केंद्रित हो जाती है।

4. संकटकाल में पूर्ण शक्तियों का केंद्रीकरण

संकटकाल में किसी भी राज्य पर आंख मूंद पर भरोसा करना  खतरनाक साबित हो सकता है, और इसीलिए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य सरकार और केंद्र सरकार का प्रावधान किया गया है। केंद्र सरकार का मूल काम राज्य सरकारों की कार्यशैली पर नजर रखना, देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को  मजबूत बनाना होता है।

साथ ही किसी भी खराब परिस्थिति के दौरान देश की रीड की हड्डी बंद कर देश की सुरक्षा करना होता है। और यदि कोई राज्य देश की विषम परिस्थिति में देश से अलग होने की बात करता है तो उसे सबक सिखाने का काम भी  केंद्रीय सरकार ही करती है, क्योंकि संकट काल के दौरान किसी भी राज्य संपूर्ण देश की राज्य अवस्था और लोक व्यवस्था का पूरा जिम्मा केंद्र सरकार पर आ जाता है, और केंद्र सरकार पूरे देश को नियंत्रित करती है। यहां पर संपूर्ण केंद्रीकरण नजर आ सकता है जो भारतीय संविधान का एकात्मक लक्षण है।

निष्कर्ष

आज के लेख में हमने जाना कि Bhartiya samvidhaan ke 4 ekatmak lakshan कौन से है, और भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण किस प्रकार से एकात्मक हैं, किस प्रकार केंद्र सरकार के पास अन्य किसी राज्य की तुलना में सर्वाधिक शक्तियां उपलब्ध है। हम आशा करते हैं कि आज का यह लेख एक आपके लिए काफी मददगार रहा होगा।

यदि आप कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।

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