दोस्तों, हिंदी साहित्य एक ऐसी विषय शाखा है जिसका अंत ढूंढ पाना शिव के छोऱ को ढूंढ पाने से भी ज्यादा मुश्किल है, अर्थात लगभग असंभव है। हिंदी साहित्य को पढ़ने वाला या पढ़ाने वाला केवल हिंदी साहित्य का शिष्य हो सकता है। जो व्यक्ति अपने आप को हिंदी साहित्य का गुरु कहता है वह मात्र मूर्खता की ओर अग्रसर व्यक्ति है।
यदि आप भी आज हिंदी साहित्य के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए आए हैं, तो हम आपको निराश नहीं करेंगे।
क्योंकि आज हम आपको बताएंगे कि हिंदी साहित्य क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई, हिंदी साहित्य के जनक कौन हैं, Hindi Sahitya Ko English Mein Kya Kahate Hain हिंदी साहित्य का महत्व क्या है, हिंदी साहित्य का उपयोग क्या है। हिंदी साहित्य के बारे में आपको लगभग सारी जानकारी देने का प्रयास करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं:-
हिंदी साहित्य को इंग्लिश में क्या कहते हैं? | Hindi Sahitya Ko English Mein Kya Kahate Hain
हिंदी साहित्य को इंग्लिश में हिंदी लिटरेचर (Hindi Literature) कहा जाता है। यहां पर हिंदी लिटरेचर का अर्थ यह है कि हिंदी भाषा में लिखी गई या बनाई गई एक ऐसी कविता काव्य या गद्य और पद्य जिसके मूल रूप से सांस्कृतिक, पारंपरिक, या राष्ट्रीय स्तर पर मतलब निकाला जा सके।
जिसका जिस हिंदी काव्य का उद्देश्य और लिखने का तरीका आशिक रूप से अलग हो उसे हिंदी लिटरेचर कहा जाता है। लिटरेचर को और भी आसान तरीके से समझने के लिए हम शब्दकोश शब्दावली का इस्तेमाल कर सकते हैं।
हिंदी साहित्य क्या है? | Hindi Sahitya kya hai
हिंदी भाषा द्वारा साहित्य की रचना करना हिंदी साहित्य का मूल तत्व माना जा सकता है। हिंदी भाषा भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। इसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में देखी जा सकती है। लेकिन मिडिवल इंडिया के अवधी तथा अर्धमगधी तथा मारवाड़ी ऐसी ही अन्य कई भाषाओं का आरंभिक इस साहित्य हिंदी साहित्य को माना जाता है।
हिंदी साहित्य के शुरुआत से ही कविता का जन्म हुआ है, और इसके बाद में अपभ्रंश काल देखने को मिलता है। काव्यों की रचना हिंदी साहित्य के जन्म के पश्चात ही शुरू हुई है। जैसा कि हम जानते हैं कि काव्य प्राचीन काल से रचे जा रहे हैं। हिंदी साहित्य में गद्य, पद्य और चंपू काव्य मूल रूप से सबसे अधिक गणना में आते हैं।
हालांकि खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी है इस पर विवाद किया जा सकता है। लेकिन श्रीनिवास दास के द्वारा लिखी गई परीक्षा गुरु को हिंदी साहित्य की पहली ऐसी रचना माना जा सकता है, जिसमें प्रमाणिक तौर पर गद्य रचना की गई हो। आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक के रूप से सबसे पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम लिया जाता है।
हिंदी साहित्य की शुरुआत कब हुई? | hindi sahitya ki shuruaat kab hui
हिंदी साहित्य की शुरुआत सातवीं शताब्दी के नजदीक देखने को मिलती है। 10 वीं शताब्दी तक आते-आते हिंदी साहित्य अपने चरम रूप को प्राप्त कर चुकी थी, जिसके पश्चात खड़ी बोली में भी काव्यों की रचना होने लगी थी। इसके पश्चात जैसे ही हिंदी और उर्दू आपस में मिलने लगे उसके पश्चात एक अलग ही भाषा के द्वारा हिंदी साहित्य अपने आप को बदलने लगी, जो 17 वीं शताब्दी तक पूरी तरह से बदल चुकी थी।
19वीं शताब्दी तक बृज भाषा में अर्थात खड़ी बोली में हिंदी साहित्य की रचनाएं काफी अधिक होने लगी थी। इसके पश्चात हिंदी साहित्य का एकाधिकार नवयुग में बढ़-चढ़कर होने लगा। हिंदी साहित्य मूल रूप से ब्रजभाषा और खड़ी बोली के काव्य के द्वारा देखी गई है, जिसमें अवधि और बुंदेली अपभ्रंश देखे गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मात्र राजस्थानी भाषा और बिहारी भाषा हिंदी भाषा के एक ऐसे अपभ्रंश है, जिन्होंने हिंदी साहित्य को पूर्ण रूप से बदल कर रख दिया है।
समय के साथ में हिंदी साहित्य के अंतर्गत, जायसी व उर्दू और ऐसे ही अन्य कई मुस्लिम समाज के द्वारा आमतौर पर बोली जाने वाली भाषाओं के अपभ्रंश से भी मेल खाती हुई नजर आती है।
हिंदी साहित्य का महत्व क्या है? | Hindi sahitya ka mahatva kya hai
समाज में लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने के लिए साहित्य का उद्गम हुआ है। हिंदी साहित्य भी लोगों की मनोंभावना को उच्च स्तर पर ले जाने के लिए और अपने भाव की अभिव्यक्ति करने हेतु लोगों को प्रेरित करती है। किसी भी साहित्य का उद्गम उसी के समाज से होता है। हिंदी भाषा उत्तर भारत में बोली जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण भाषा है और पूरे विश्व में बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा में से एक है।
किसी भी साहित्य के अंतर्गत उसे भाषा या संदर्भ को जोड़कर एक ऐसी रचना की जाती है, जिसमें संदर्भ का पता लगाना पढ़ने वाले व्यक्ति का काम होता है। इसका उदाहरण हम आपको सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की कविता से दे सकते हैं:-
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किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ में जोड़ दिया।
कोई मधुकोश काट लाया था,
मैंने निचोड़ लिया।
यों मैं कवि हूं, आधुनिक हूं, नया हूं,
काव्य तत्व की खोज में कहा नहीं गया हूं।
मैं चाहता हूं आप मुझे
एक एक शब्द पर सराहते हुए पढ़े।
पर प्रतिमा- अरे, वह तो
जैसे आपको रुचे आप स्वयं गढ़े।
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यह पंक्तियां सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की आत्म-स्वीकार से ली गई है। इसमें काव्य सृजन की इच्छा या कविता सृजन की चेष्टा को, और उस दौरान व्यक्ति की मनोस्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से बताया गया है। अब आप समझ सकते हैं कि किस प्रकार हिंदी साहित्य हमारे समाज में हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति को एक नई ऊंचाई प्रदान करती है।
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अंतिम विचार
आज के लेख में हमने आपको हिंदी साहित्य के बारे में लगभग सारी जानकारी उपलब्ध कराई है। हम आशा करते हैं कि आज का यह लेख पढ़ने के पश्चात आप समझ पाएंगे कि Hindi Sahitya Ko English Mein Kya Kahate Hain.
यदि आपके मन में इस लेख से संबंधित कोई सवाल है जो आप हमसे पूछना चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स में कॉमेंट कर के पूछ सकते हैं।
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