नमस्कार दोस्तों, यदि आप हिंदी व्याकरण पढ़ते हैं या फिर आप हिंदी व्याकरण के अंतर्गत अपनी रूचि रखते हैं, तो आपने शांत रस के बारे में तो जरूर पढ़ा होगा, जो कि हिंदी व्याकरण का एक काफी महत्वपूर्ण टॉपिक होता है। दोस्तों क्या आप जानते हैं, कि शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित बताइए (shant ras ki paribhasha aur udaharan sahit likhiye), यदि आपको इस सवाल का जवाब मालूम नहीं है, तथा आप इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं कि शांत रस किसे कहते हैं शांत रस की परिभाषा क्या होती है एवं शांत रस के प्रकार के होते हैं और इस विषय से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी अभी हम आपको इस पोस्ट में देने वाले हैं।
शांत रस किसे कहते हैं?
शांत रस हिंदी व्याकरण का एक काफी महत्वपूर्ण होता है, जो काफी जगह पर इस्तेमाल किया जाता है तथा अनेक परीक्षाओं के अंतर्गत शांत रस से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।
शांत रस की परिभाषा
जब मनुष्य अपनी मोह माया को त्याग कर तथा सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है, और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है, तो मनुष्य के मन में जो शांति मिलती है उसे शांत रस कहा जाता है।
इसको अगर आसान भाषा के अंतर्गत समझा जाए, तो जब कोई भी मनुष्य अपने सांसारिक जीवन के सारे सुख त्याग देता है तथा सांसारिक जीवन से अपना मुंह मोड़ लेता है, तथा परमात्मा की खोज के अंतर्गत निकल जाता है, या फिर परमात्मा की खोज के लिए जो प्रतिज्ञा करता है, तथा उस समय उस व्यक्ति के मन में जो भाव उत्पन्न होता है, या फिर जो रस उत्पन्न होता है उसे शांत रस कहा जाता है।
शांत रस का स्थाई भाव क्या होता है?
कई अलग-अलग परीक्षाओं के अंतर्गत यह प्रश्न पूछा जाता है कि शांत रस का स्थाई भाव क्या होता है तो आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि शांत रस का स्थाई भाव शम / निर्वेद या वीतराग / वैराग्य होता है।
शांत रस के उदाहरण
वैसे तो शांत रस के हमें अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं, लेकिन शांत रस के कुछ महत्वपूर्ण 10 उदाहरण निम्न प्रकार से हैं:-
उदाहरण 1-
मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥
उदाहरण 2-
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ।
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।
जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम वचन नेम निबहौंगो।
उदाहरण 3-
मन पछितैहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते
सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥
उदाहरण 4-
‘ तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग?
आह! तुम कितने अधिक हताश
बताओ यह कैसा उद्वेग?
उदाहरण 5-
मन रे ! परस हरि के चरण,
सुलभ
सीतल कमल कोमल,
त्रिविधा ज्वाला हरण
उदाहरण 6-
जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं,
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।
उदाहरण 7-
देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा
उदाहरण 8-
लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार
उदाहरण 9-
भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।
निष्कर्ष
तो दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से आपने जाना कि शांत रस किसे कहते हैं शांत रस की परिभाषा क्या होती है, शांत रस का स्थाई भाव क्या होता है, इसके अलावा शांत रस के उदाहरण क्या-क्या है। हमें उम्मीद है कि आपको हमारी द्वारा दी गई यह इंफॉर्मेशन पसंद आई है, तो आपको इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया सीखने को मिला है।
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