नमस्कार दोस्तों गणित विषय के अंतर्गत 0 सबसे महत्वपूर्ण अंक होता है, जीरो के बिना आज के समय गणित विषय की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। दोस्तों क्या आप जानते हैं कि आखिर इस जीरो की खोज किसने की थी? (0 ki khoj kisne kari thi) यदि आपको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, तथा आप इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
आज के इस पोस्ट के अंतर्गत हम आपको बताने वाले हैं कि जीरो की खोज किसने की थी। इसके अलावा हम आपको इस पोस्ट के अंतर्गत 0 से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी शेयर करने वाले हैं, तो ऐसे में आज का यह आर्टिकल आपके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है, तो इसको अंत तक जरूर पढ़िए।
जीरो की खोज किसने की थी? | 0 Ki Khoj Kisne Ki
दोस्तों गणित विषय के सबसे महत्वपूर्ण अंक जीरो की खोज महान गणितज्ञ तथा खगोल विद आचार्य आर्यभट्ट के द्वारा की गई थी। आर्यभट्ट के द्वारा पांचवी सदी के अंतर्गत पहली बार 0 अंक का इस्तेमाल किया गया था, या फिर 0 संख्या का इस्तेमाल किया गया था। जैसा कि आपको पता होगा कि आर्यभट्ट भारत के ही निवासी थे, तो उन्होंने जीरो की खोज भी भारत के अंतर्गत ही की थी, तो आज के समय इस पूरी दुनिया को जीरो की देन भारत के द्वारा ही की गई है।
जीरो की खोज कितना मत्त्वपूर्ण हैं?
अगर जीरो का पता लगाना कितना जरूरी है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अगर आपको बिना जीरो का इस्तेमाल किए 100 लिखना है तो दिखाइए कि इसे कैसे लिखना है।
अब आप शून्य खोजने का महत्व समझ गए होंगे।
यदि आप किसी संख्या को शून्य से गुणा करते हैं, तो आप अक्सर शून्य प्राप्त करते हैं।
लेकिन अगर उसी संख्या के आगे शून्य बढ़ा दिया जाए तो उस संख्या का कितना महत्व हो जाता है।
जैसे – गुणा करने पर 9×0 = 0
जीरो बढ़ा देने पर 9000
आर्यभट ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में लिखा है:-
एक (1), दश (10), शत (100), सहस्र (1000), अयुत (10000), नियुत (100000), प्रयुत (1000000), कोटि (10000000), अर्बुद (100000000), स्थानों में प्रत्येक संख्या अपनी पिछली संख्या से दस गुणा है।
दोस्तों यदि आज के समय 0 नहीं होता तो विज्ञान तथा गणित विषय की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। और आज अंदाजा लगा सकते हैं, कि यदि भारत के द्वारा इस दुनिया को जीरो के बारे में जानकारी नहीं दी, जाती तो आज इस दुनिया का क्या हाल होता।
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जीरो का इतिहास
ब्रह्मगुप्त ने शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का उपयोग किया जा रहा था। यह कई प्राचीन मंदिरों के पुरातत्व और ग्रंथों में देखा गया है। शुरुआत में शून्य सिर्फ एक प्लेसहोल्डर था। लेकिन बाद में यह गणित का अहम हिस्सा बन गया। कहा जाता है कि जीरो की अवधारणा काफी पुरानी है लेकिन यह भारत में 5वीं शताब्दी तक पूरी तरह विकसित हो चुकी थी।
मतगणना प्रणाली शुरू करने वाले पहले लोग सुमेरियन थे। जीरो को भारत में जीरो कहा जाता था जो कि संस्कृत का शब्द है। शून्य की अवधारणा और इसकी परिभाषा सबसे पहले भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने 628 ईस्वी में दी थी। उसके बाद भारत में इसका विकास जारी रहा। बाद में 8वीं शताब्दी में शून्य अरबोजी सभ्यता तक पहुँच गया जहाँ से इसे अपना वर्तमान स्वरूप ‘0’ मिला। अंत में, 12वीं शताब्दी के आसपास, यह यूरोप तक पहुंच गया और यूरोपीय गणना में सुधार हुआ।
शून्य का सर्वप्रथम उपयोग कब किया गया?
भारत में शून्य का विकास 5वीं शताब्दी में हुआ था या भारत में शून्य की खोज 5वीं शताब्दी में ही हुई थी। वास्तव में भारतीय उपमहाद्वीप में गणित में शून्य का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। शून्य पहली बार तीसरी या चौथी शताब्दी की बख्शाली पांडुलिपि में दिखाई दिया। ऐसा कहा जाता है कि 1881 में एक किसान ने पेशावर में बख्शाली के पास एक गांव में इस दस्तावेज़ पाठ की खुदाई की, जो अब पाकिस्तान में है।
यह एक कठिन दस्तावेज़ है क्योंकि यह दस्तावेज़ का केवल एक खंड नहीं है, बल्कि इसमें कई खंड शामिल हैं जो कई सदियों पहले लिखे गए थे। रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक की मदद से, जो उम्र निर्धारित करने के लिए कार्बनिक पदार्थों में कार्बन समस्थानिकों की सामग्री को मापने की एक विधि है, यह पता चला है कि बख्शाली पांडुलिपि में कई ग्रंथ हैं। सबसे पुराना भाग 224-383 ईस्वी का, नया भाग 680-779 ईस्वी का और नवीनतम भाग 885-993 ईस्वी का है। और इस पांडुलिपि में चीड़ के पेड़ के 70 पत्ते और सैकड़ों शून्य अंक (0) के रूप में दिखाए गए हैं।
शून्य सम संख्या क्यों है?
शून्य एक सम संख्या है क्योंकि यह “सम संख्या” की मानक परिभाषा के अनुसार भी शून्य है। एक संख्या को “सम” कहा जाता है यदि वह 2 का पूर्ण गुणज है। उदाहरण के लिए 10 एक सम संख्या है क्योंकि 5 × 2=10 बराबर है। इसी प्रकार शून्य भी 2 का एक पूर्णांक गुणज है जिसे 0 × 2 के रूप में लिखा जा सकता है, इसलिए शून्य एक सम संख्या है।
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आज आपने क्या सीखा
तो दोस्तों आज किस आर्टिकल के माध्यम से आप ने जाना कि जीरो की खोज किसने की थी (0 ka khoj kisne kiya), हमने आपको इसके बारे में सभी जानकारी विस्तार से दी है।
इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको जीरो से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी देने का प्रयास किया है, हमें उम्मीद है कि आपको हमारे द्वारा दी गई यह सभी जानकारी पसंद आई है तथा आपको इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया सीखने को मिला है। इस पोस्ट को सोशल मीडिया के माध्यम से अपने दोस्तों के बीच शेयर जरूर करें तथा अपनी राय हमें कमेंट में जरूर दें।
FAQ
जीरो की शुरुआत कैसे हुई?
तो जवाब है आर्यभट्ट। भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आचार्य आर्यभट्ट ने सबसे पहले 5वीं शताब्दी में शून्य को एक संख्या के रूप में प्रयोग करना शुरू किया था। आज पूरी दुनिया भी मान चुकी है कि दुनिया को जीरो का अनोखा तोहफा भारत का है।
शून्य का जनक कौन है?
आर्यभट्ट को लोग शून्य का जनक मानते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी पुस्तक आर्यभटीय के गणितपद 2 में एक से अरब तक की संख्या बताकर लिखा है।
शून्य की खोज कहाँ हुई थी?
भारतीय लोगों का मानना है कि शून्य की खोज भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने की थी, जबकि कुछ अमेरिकी गणितज्ञों का मानना है कि एक अमेरिकी गणितज्ञ अमीर एक्सल ने कंबोडिया में शून्य की खोज की थी।
0 कितना होता है?
शून्य एक सम संख्या है। दूसरे शब्दों में, इसकी समता—एक पूर्णांक का गुण जो यह निर्धारित करता है कि वह सम है या विषम—सम है। इसे एक सम संख्या साबित करने का सबसे आसान तरीका यह है कि शून्य “सम” होने की परिभाषा में फिट बैठता है: यह 2 का पूर्ण गुणक है, आमतौर पर 0 × 2 शून्य देता है।
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