कबीरदास जी की सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए

कबीर दास की सामाजिक चेतना उनके मूल कभी भूल से परे नहीं है। कबीर दास जी न केवल निर्गुण मत के अनुयाई कभी है, इसके अलावा उन्होंने समाज को अपना आईना दिखाने के लिए कई ऐसी कविताओं की रचना की है जो समाज को एक नई दिशा दिखाती है।

उनके बारे में पढ़कर अक्सर लोग कबीर दास की सामाजिक चेतना को समझने का प्रयास करते हैं (kabir ke kavya ki pramukh visheshtaon ko spasht kijiye)। इसीलिए आज के लेख में हम आपको कबीरदास की सामाजिक एकता को व्यक्त करके बताएंगे कि कबीर दास जी की सामाजिक चेतना कैसी थी।

कबीर दास जी की सामाजिक चेतना | Kabirdas Ki Samajik Chetna Ko Vyakt Kijiye

कबीरदास जी मूल रूप से निर्गुण की कवि है, और भक्ति काल के दौरान निर्गुण भक्तों में कबीर दास जी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत भूमि के एक रत्न के तौर पर उन्हें पहचाना जाता है। कबीर मूल रूप से एक अरबी शब्द है।

जिसका अर्थ ‘महान’ होता है, और अपने नाम के अनुरूप ही कबीर दास जी एक भक्त और कभी बाद में थे, लेकिन पहले वह अपने शब्दों के कारण और अपनी कविताओं से समाज सुधारक का काम करते थे।

कबीरदास की सामाजिक चेतना को व्यक्त किजिये | kabir das ki bhakti bhavna ko udaharan sahit spasht kijiye
कबीरदास की सामाजिक चेतना को व्यक्त किजिये | kabir das ki bhakti bhavna ko udaharan sahit spasht kijiye

कबीरदास जी, सिकंदर लोदी के समय के साथ में हुए थे। यानी कि समकालीन थे। कबीर दास जी की कविताओं में यही देखने को मिलता है कि उन्होंने अपने काल की कुछ महत्वपूर्ण रूढ़िवादी सोच का भरपूर विरोध किया है। साथ ही हिंदी भाषा में उनका योगदान नकारा नहीं जा सकता।

रामचंद्र शुक्ल ने भी उनके प्रतिभा का लोहा माना है। ऐसा कहा जाता है कि कबीर दास जी के समय के दौरान राज्य  आर्थिक संकट का समय गुजर रहा था, और उस समय देश के अमीर और गरीब वर्ग के मध्य खाई काफी गहरी हो चुकी थी।

हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग आपस में एक दूसरे की मार काट कर रहे थे। कबीर दास जी को एक ऐसे व्यक्तित्व के तौर पर माना जाता है कि भक्ति काल के दौरान उन्होंने राम रहीम के नाम पर चल रहे पाखंड भेदभाव कर्म को अपने कविताओं के माध्यम से बेपर्दा किया।

सामान्य लोग जिन बातों को लोग उसमें बोलने से भी डरते थे जिन बातों को करने से भी लोगों के ह्रदय में कंपन पैदा हो जाती थी, उन बातों को और रूढ़िवादी विचारों का विरोध कबीर दास जी हंसते-हंसते अपनी कविताओं के माध्यम से कर देते थे।

कबीर दास के सामाजिक चेतना के उदाहरण

निम्नलिखित कारणों से कबीर दास की सामाजिक चेतना को समझा जा सकता है:-

  • कबीर दास ने मूर्ति पूजा की कड़े शब्दों में निंदा की है और कहा है कि अगर पत्थर पूछने से भगवान मिलता है तो मैं पूरे पहाड़ को ही पूजने लग जाता।
  • कबीर दास ने हिंसा का विरोध करते हुए कहा कि जो जीव एक दूसरे जीव को खाता है वह व्यक्ति भावनाहीन मूर्ख के समान है।
  • कबीर ने यह भी कहा है कि मनुष्य जीवन हमेशा के लिए ही है। इसमें हमें घमंड नहीं करना चाहिए। यह तो पानी के बुलबुले के समान नष्ट हो जाता है। हमें हमारी जीवन का उपयोग अच्छे कर्मों में करना चाहिए।
  • कबीर ने समाज में फैली हुई जाती-पाती और ऊंच-नीच को भी कड़े शब्दों में नकारा है, और वह मनुष्य के पहचान को उसके ज्ञान और कर्मों का फल ही मानते हैं।
  • कबीर ने गुरु के पद को भी अत्यंत ही महत्व दिया है, वे गुरु ही है जिनकी कृपा से उन्होंने रूढ़ीवाद के बंधनों को तोड़ा है और स्वतंत्र चिंतक होकर उन्होंने ज्ञान पूर्ण सच्चाई को सामान्य लोगों तक पहुंचाया है।
  • कबीर ने गुरु का परमात्मा का दर्जा दिया है।
  • कबीर के पक्ष नारी के खिलाफ से नजर होते आते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि नारी भक्ति मार्ग में एक बाधा है, और नारी को माया का स्वरूप माना जा सकता है, जिससे व्यक्ति को बचना चाहिए। नारी के पतिव्रता स्वरूप की कबीरदास जी बहुत ज्यादा प्रशंसा करते हैं।
  • इन सब बातों से यह पता चलता है कि कबीर दास के सामाजिक चेतना को लेकर कई प्रकार के रंग देखे जा सकते हैं, जिसमें उन्होंने अनेकों रूढ़िवादी विचारधारा का विरोध किया है, और अनेकों रूढ़िवादी विचारधारा का सहयोग किया है।

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निष्कर्ष

आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया (कबीर दास की सामाजिक चेतना को व्यक्त कीजिए | kabir ek samaj sudharak vidrohi sant kavi the vivechna kijiye) के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।

FAQ

कबीर की क्रान्तिकारी चेतना पर प्रकाश डालिए?

कबीर दास जी प्रगतिशील चेतना वाले क्रांतिकारी कवि थे। उनका व्यक्तित्व क्रांतिकारी था। उन्होंने धर्म और समाज के क्षेत्र में व्याप्त पाखंड, कुप्रथाओं और अंधविश्वासों की कड़ी आलोचना की और अस्पृश्यता और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सक्रिय प्रयास किए। तुम कहते हो काग़ज़ लिखना, मैं कहता हूँ नज़र।

कबीर की सामाजिक प्रासंगिकता?

कबीर अपने युग के वर्ग संघर्ष से गहराई से जुड़े रहे। युगन गतिशील परिस्थितियों के विरुद्ध विद्रोह करता रहा। उन्होंने शोषक पारंपरिक मान्यताओं में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। इसलिए कबीर प्रगतिशील बने हुए हैं और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

क्या कबीर दास समाज सुधारक हैं?

वह भारत के एक प्रसिद्ध संत, कवि और समाज सुधारक थे जो 15वीं शताब्दी के दौरान रहे। उनकी श्रद्धेय रचनाएँ और कविताएँ सर्वोच्च होने की महानता और एकता का वर्णन करती हैं। संत कबीर दास भक्ति आंदोलन के समर्थक थे।

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