सीता जी के कितने पुत्र थे? कुश के जन्म की क्या कहानी है?

दोस्तों, रामायण एक ऐसी रचना है जिसे महर्षि वाल्मीकि की सबसे बेहतरीन रचना के तौर पर देखा जाता है। रामायण में भगवान श्री राम के चरित्र के द्वारा एक आदर्श पुरुष के चरित्र के बारे में बताया गया है, लेकिन रामायण में कई दृश्य ऐसे भी हैं जो हमारे ह्रदय को झकझोर कर रख देते हैं, जिसमें से मां सीता को राजमहल से निकाले जाने का प्रसंग भी अत्यंत दुखदाई है।

हम सभी को पता है कि मां सीता ने जंगल में महर्षि वाल्मीकि जी के आश्रम में अपने पुत्रों को जन्म दिया था लेकिन कुछ दृश्यों में यह पूर्ण रूप से सही नहीं है। इसका मतलब यह है कि मां सीता के कितने पुत्र थे? या माँ सीता ने कितने पुत्रों को जन्म दिया है, इस पर कई प्रकार के विवाद देखने को मिलते हैं।

क्या आप जानते हैं कि मां सीता के कितने पुत्र थे? यदि आप नहीं जानते और जानना चाहते हैं तो आज के लेख में हमारे साथ बने रहिएगा, क्योंकि आज हम आपको बताने वाले हैं कि सीता जी के कितने पुत्र थे, मां सीता ने कितने पुत्रों को जन्म दिया था, इन सब के बारे में आज हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे।

तो चलिए शुरू करते हैं –

सीता जी के कितने पुत्र थे? | sita ji ke kitne putra the

sita ji ki mata ka naam kya hai

रामायण के कई प्रसंगों में यह देखा गया है कि भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश का वर्णन रामायण में कई बार आता है। ऐसा भी देखा गया है कि लव और कुश दोनों, भगवान श्री राम के दरबार में रामायण का पाठ करते हुए भी नजर आते हैं। लेकिन यदि मां सीता के संदर्भ में बात की जाए तो ऐसा कहा जाता है कि मां सीता जी ने दो पुत्रों को जन्म दिया था, जिनका नाम लव व कुश था, और वे दोनों मां सीता और भगवान श्री राम के संतान थे।

लेकिन कुछ प्रश्न को भी यह भी देखा गया है कि मां सीता जी ने जंगल में भेजे जाने के पश्चात वाल्मीकि जी के आश्रम मेंकेवल लव को जन्म दिया था, और कुश को मां सीता जी ने पैदा नहीं किया था, बल्कि कुछ को वाल्मीकि जी ने अपनी मंत्र शक्ति से बनाया था।

कुश के जन्म की क्या कहानी है? | kush ke jaam ke kya kahani hai bataiye

कुश के जन्म के संदर्भ में एक कहानी यह सामने आती है कि एक बार मां सीता जंगल में लकड़ियां लेने जा रही थी और जंगल में लकड़ी लेने जाने से पहले वे अपने पुत्र लव को वाल्मीकि जी के शरण में छोड़ कर जा रही थी, लेकिन जब मां सीता ने यह देखा कि वाल्मीकि जी अपने कार्यों में सर्वाधिक उलझे हुए हैं और उन्हें लव को संभालने का समय ही नहीं मिल रहा है, तो बिना वाल्मिकी जी को बताएं मां सीता लव को लेकर जंगल में लकड़ियां लेने चली गई।

लेकिन जब वाल्मिकी जी ने अपने चारों ओर देखा और उन्हें लव नहीं मिला तो उन्हें लगा कि शायद कोई जंगली जानवर लव को लेकर चला गया, और वह चिंतित होने लगे कि सीता को क्या जवाब देंगे, तो उन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से नजदीक ही रखी कुशा घास को मंत्र शक्ति से एक नए शरीर में परिवर्तित कर दिया। वह शरीर बिल्कुल लव की तरह ही था, जिसे देखकर यह समझ पाना भी असंभव था कि लव और कुश में क्या अंतर है।

जब मां सीता जंगल से वापस आई और वह सीता ने यह देखा कि लव वाल्मीकि जी के पास खेल रहा है, तो उन्हें यह शंका हुई और उन्होंने पूछा कि महर्षि यह क्या है, तो महर्षि वाल्मीकि जी ने पूरी बातें बताई तथा मां सीता को भी अपने पुत्र लव के दो स्वरूप देखकर अत्यंत ही ममता का मोह पैदा हुआ उसके पश्चात मां सीता के दो पुत्रों के नाम लव और कुश के रूप में जानें जाने लगे। यह कथा मां सीता के पुत्र कुश के पैदा होने की कथा है।

मां सीता का तीसरा पुत्र कौन था? | maa sita ka tisra putra kon hai

मां सीता का तीसरा पुत्र कोई भी नहीं था। मां सीता के मात्र 2 पुत्र थे जिनके नाम लव और कुश है लोक कथाओं के अनुसार यह देखा गया है और माना जाता है कि और कुछ दोनों देवी सीता और भगवान श्री राम की संतान थे।

सीता के माता -पिता के नाम क्या था?

सीता जी के माता का नाम भूमि और पिता का राजा जनक था।

माता सीता के 108 नाम | 108 names of sita devi

1 ॐ जनकनन्दिन्यै नमः। 57 ॐ शुमाल्याम्बरावृतायै नमः।
2 ॐ लोकजनन्यै नमः। 58 ॐ सन्तुष्टपतिसंस्तुतायै नमः।
3 ॐ जयवृद्धिदायै नमः। 59 ॐ सन्तुष्टहृदयालयायै नमः।
4 ॐ जयोद्वाहप्रियायै नमः। 60 ॐ श्वशुरस्तानुपूज्यायै नमः।
5 ॐ रामायै नमः। 61 ॐ कमलासनवन्दितायै नमः।
6 ॐ लक्ष्म्यै नमः। 62 ॐ अणिमाद्यष्टसंसिद्ध नमः।
7 ॐ जनककन्यकायै नमः। 63 ॐ कृपावाप्तविभीषणायै नमः।
8 ॐ राजीवसर्वस्वहारिपादद्वयाञ्चितायै नमः। 64 ॐ दिव्यपुष्पकसंरूढायै नमः।
9 ॐ राजत्कनकमाणिक्यतुलाकोटिविराजितायै नमः। 65 ॐ दिविषद्गणवन्दितायै नमः।
10 ॐ मणिहेमविचित्रोद्यत्रुस्करोत्भासिभूषणायै नमः। 66 ॐ जपाकुसुमसङ्काशायै नमः।
11 ॐ नानारत्नजितामित्रकाञ्चिशोभिनितम्बिन्यै नमः। 67 ॐ दिव्यक्षौमाम्बरावृतायै नमः।
12 ॐ देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षससेवितायै नमः। 68 ॐ दिव्यसिंहासनारूढायै नमः।
13 ॐ सकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणकृतत्वरायै नमः। 69 ॐ दिव्याकल्पविभूषणायै नमः।
14 ॐ एककालोदितानेकचन्द्रभास्करभासुरायै नमः। 70 ॐ राज्याभिषिक्तदयितायै नमः।
15 ॐ द्वितीयतटिदुल्लासिदिव्यपीताम्बरायै नमः। 71 ॐ दिव्यायोध्याधिदेवतायै नमः।
16 ॐ त्रिवर्गादिफलाभीष्टदायिकारुण्यवीक्षणायै नमः। 72 ॐ दिव्यगन्धविलिप्ताङ्ग्यै नमः।
17 ॐ चतुर्वर्गप्रदानोद्यत्करपङ्जशोभितायै नमः। 73 ॐ दिव्यावयवसुन्दर्यै नमः।
18 ॐ पञ्चयज्ञपरानेकयोगिमानसराजितायै नमः। 74 ॐ हय्यङ्गवीनहृदयायै नमः।
19 ॐ षाड्गुण्यपूर्णविभवायै नमः। 75 ॐ हर्यक्षगणपूजितायै नमः।
20 ॐ सप्ततत्वादिदेवतायै नमः। 76 ॐ घनसारसुगन्धाढ्यायै नमः।
21 ॐ अष्टमीचन्द्ररेखाभचित्रकोत्भासिनासिकायै नमः। 77 ॐ घनकुञ्चितमूर्धजायै नमः।
22 ॐ नवावरणपूजितायै नमः। 78 ॐ चन्द्रिकास्मितसम्पूर्णायै नमः।
23 ॐ रामानन्दकरायै नमः। 79 ॐ चारुचामीकराम्बरायै नमः।
24 ॐ रामनाथायै नमः। 80 ॐ योगिन्यै नमः।
25 ॐ राघवनन्दितायै नमः। 81 ॐ मोहिन्यै नमः।
26 ॐ रामावेशितभावायै नमः। 82 ॐ स्तम्भिन्यै नमः
27 ॐ रामायत्तात्मवैभवायै नमः। 83 ॐ अखिलाण्डेश्वर्यै नमः।
28 ॐ रामोत्तमायै नमः। 84 ॐ शुभायै नमः।
29 ॐ राजमुख्यै नमः। 85 ॐ गौर्यै नमः।
30 ॐ रञ्जितामोदकुन्तलायै नमः। 86 ॐ नारायण्यै नमः।
31 ॐ दिव्यसाकेतनिलयायै नमः। 87 ॐ प्रीत्यै नमः।
32 ॐ दिव्यवादित्रसेवितायै नमः। 88 ॐ स्वाहायै नमः।
33 ॐ रामानुवृत्तिमुदितायै नमः। 89 ॐ स्वधायै नमः।
34 ॐ चित्रकूटकृतालयायै नमः। 90 ॐ शिवायै नमः।
35 ॐ अनुसूयाकृताकल्पायै नमः। 91 ॐ आश्रितानन्दजनन्यै नमः।
36 ॐ अनल्पस्वान्तसंश्रितायै नमः। 92 ॐ भारत्यै नमः।
37 ॐ विचित्रमाल्याभरणायै नमः। 93 ॐ वाराह्यैः नमः।
38 ॐ विराथमथनोद्यतायै नमः। 94 ॐ वैष्णव्यै नमः।
39 ॐ श्रितपञ्चवटीतीरायै नमः। 95 ॐ ब्राह्म्यैः नमः।
40 ॐ खदयोतनकुलानन्दायै नमः। 96 ॐ सिद्धवन्दितायै नमः।
41 ॐ खरादिवधनन्दितायै नमः। 97 ॐ षढाधारनिवासिन्यै नमः।
42 ॐ मायामारीचमथनायै नमः। 98 ॐ कलकोकिलसल्लापायै नमः।
43 ॐ मायामानुषविग्रहायै नमः। 99 ॐ कलहंसकनूपुरायै नमः।
44 ॐ छलत्याजितसौमित्रै नमः। 100 ॐ क्षान्तिशान्त्यादिगुणशालिन्यै नमः।
45 ॐ छविनिर्जितपङ्कजायै नमः। 101 ॐ कन्दर्पजनन्यै नमः।
46 ॐ तृणीकृतदशग्रीवायै नमः। 102 ॐ सर्वलोकसमारध्यायै नमः।
47 ॐ त्राणायोद्यतमानसायै नमः। 103 ॐ सौंगन्धसुमनप्रियायै नमः।
48 ॐ हनुमद्दर्शनप्रीतायै नमः। 104 ॐ श्यामलायै नमः।
49 ॐ हास्यलीलाविशारदायै नमः। 105 ॐ सर्वजनमङ्गलदेवतायै नमः।
50 ॐ मुद्रादर्शनसन्तुष्टायै नमः। 106 ॐ वसुधापुत्र्यै नमः।
51 ॐ मुद्रामुद्रितजीवितायै नमः। 107 ॐ मातङ्ग्यै नमः।
52 ॐ अशोकवनिकावासायै नमः। 108 ॐ सीतायै नमः।
53 ॐ निश्शोकीकृतनिर्जरायै नमः। 109 ॐ हेमाञ्जनायिकायै नमः।
54 ॐ लङ्कादाहकसङ्कल्पायै नमः। 110 ॐ सीतादेवीमहालक्ष्म्यै नमः।
55 ॐ लङ्कावलयरोधिन्यै नमः। 111 ॐ सकलसांराज्यलक्ष्म्यै नमः।
56 ॐ शुद्धिकृतासन्तुष्टायै नमः। 112 ॐ भक्तभीष्टफलप्रदायै नमः।

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निष्कर्ष

आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया sita ji ke kitne putra the के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।

FAQ

सीता ने आकाश मार्ग से कोनसी वस्तु नीचे फेंकी थी?

सीता ने आकाश मार्ग से पृथ्वी पर अपने चूड़ियाँ गिराई थी।

माता सीता जी के पास कितने चूड़ामणि थे?

माता सीता जी के पास 1 चूड़ामणि थी।

सीता जी किसकी बेटी थी?

जब उस स्थान की खुदाई की गई तो एक कलश मिला जिसमें एक सुन्दर कन्या खेल रही थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उसे अपनी पुत्री बनाकर अपने साथ ले गए। निःसंतान सुनयना और जनक की संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी हुई।

सीता की उम्र कितनी है?

सीता और राम के विवाह के समय रामजी केवल 14 वर्ष के थे, जबकि सीताजी केवल 6 वर्ष की थीं। विवाह के बाद दोनों 12 वर्ष तक अयोध्या में रहे, जिसके बाद उन्हें वनवास भोगने के लिए वन में जाना पड़ा। इस समय सीताजी 18 वर्ष की थीं, राम जी 26 वर्ष के थे। जब वे वनवास से लौटे तो सीता की आयु 32 वर्ष और रामजी की आयु 40 वर्ष थी।

भगवान राम की शादी कितने वर्ष में हुई थी?

वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि विवाह के समय भगवान राम की आयु 13 वर्ष और माता सीता की आयु 6 वर्ष थी

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