ख्वाजा गरीब नवाज का इतिहास: वर्तमान समय में ख्वाजा गरीब नवाज के बारे में लोग कम जानते हैं। लेकिन हजरत मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में लोग कभी परिचित हैं। हालांकि उनके इतिहास से नहीं केवल उनके नाम से इसीलिए लोग ख्वाजा गरीब नवाज का अर्थात ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का इतिहास भी जानना चाहते हैं।
यदि आप भी ख्वाजा गरीब नवाज का इतिहास जानना चाहते हैं तो आज का यह लेख आपके लिए ही है, क्योंकि आज के लेख में हम आपको ख्वाजा गरीब नवाज के इतिहास के बारे में सारी जानकारी देंगे।
ख्वाजा गरीब नवाज का इतिहास | khwaja garib nawaz history hindi me
ख्वाजा गरीब नवाज इस्लाम धर्म के एक सूफी संत माने जाते थे, उन्होंने मुस्लिमों की भलाई के लिए कई कार्य किए और इसलिए उन्हें गरीब मुस्लिमों का मसीहा भी कहा जाता था। ख्वाजा गरीब नवाज को हजरत मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज अल्लाह के सच्चे बंदे थे जो अल्लाह की इबादत में ही अपना समय व्यतीत करते थे। ऐसा कहा जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज का परिवार काफी धनी था उनके पिताजी का नाम ख्वाजा गयासुद्दीन था तथा उनकी माता जी का नाम बीबी उम्मूल वर था।
ख्वाजा गरीब नवाज का जन्म तकरीबन 1135 में हुआ था, और उनका जन्म कहां हुआ था इसके बारे में कोई पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं है। लेकिन कुछ लोगों का मानना यह है कि ख्वाजा गरीब नवाज का जन्म संजार में हुआ था, लेकिन कुछ लोगों का मानना यह है कि उनका जन्म सिस्तान में हुआ था। हालांकि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म स्थान को लेकर काफी मतभेद है। ख्वाजा गरीब नवाज के माता-पिता ने उनका नाम बचपन में मोइनुद्दीन हसन रखा था और उन्हें प्यार से हसन कहकर बुलाते थे।
जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अर्थात हसन 5 वर्ष के थे तब वह एक साधारण बच्चे की तरह व्यवहार नहीं करते थे। और गरीब मुसलमानों के लिए उनके दिल में बड़ा प्रेम थाऔर उनका दिल गरीब मुसलमानों के लिए धड़कता था। ऐसा कहा जाता है कि वह इस्लाम की ओर इतना ध्यान देते थे कि बचपन में भी जब कभी किसी भी आदमी या बच्चे को सड़क पर चलता देखते थे तो उसका हाथ पकड़कर मस्जिद में ले जाते थे और उसे नमाज पढ़ना शुरू कर देते थे।
एक बार की बात है जब हसन ईद पर अच्छे कपड़े पहन कर बाहर खेलने गए थे, तब उन्होंने एक बच्चे को देखा जो कि गरीब था, और उसने फटे हुए कपड़े पहने थे, तो हसन ने अपने अच्छे कपड़े उतार कर उसे गरीब बच्चे को पहना दिए, साथ ही उस लड़के का हाथ पकड़कर वह हसन हुसैन दरगाह ले गया, और उसे नमाज भी पढ़ाई।
मुस्लिम समाज में ख्वाजा गरीब नवाज की प्रशंसा आज भी की जाती है। ख्वाजा गरीब नवाज की प्रारंभिक शिक्षा उनके परिवार में ही उन्हें मिली थी। उसके पश्चात उन्हें मदरसे में भेज दिया गया था उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए संजर के मदरसे में भेजा गया था।
जब ख्वाजा गरीब नवाज 15 वर्ष की आयु के हुए तब उनकी पिता का देहांत हो गया। और उनके पिता का देहांत तकरीबन 1149 में हुआ था। ख्वाजा गरीब नवाज के पिता के देहांत के बाद पूरे पिता की जायदाद गरीब नवाज को सौंप दी गई, और ख्वाजा गरीब नवाज के हिस्से में एक बाग और पनचक्की आई थी।
वह बाग की सदैव सुरक्षा करते थे और बाघ में पानी देने जाया करते थे। एक दिन में पानी देने जा रहे थे तब वहां के पास इलाके से सूफी संत गुजर रहे थे, जिनका नाम इब्राहिम कादोज था। इब्राहिम ने हसन को देखते ही पहचान लिया कि यह गरीबों का मसीहा बनेगा और इसीलिए भी उसके पास गए पास जाते ही हसन ने इब्राहिम अर्थात सूफी संत की काफी अधिक सेवा की, जिससे खुश होकर सूफी संत ने उन्हें खाने के लिए खल दिया। उस खल को खाते ही ख्वाजा गरीब नवाज की दिनचर्या बदल गई और वह दीन दुखियों की तरफ से और ज्यादा आकर्षित हो गए।
उन्हें लोगों की मदद करने मैं दिलचस्पी होने लगी जिसके पश्चात उन्होंने बुखारा, बगदाद, इराक, समरकंद और अरब देशों की यात्राएं करना शुरू कर दी। इसके पश्चात जब हसन अरब देशों से होते हुए भारत आए और भारत में अजमेर पहुंचे उन्हें और उनके साथियों को आराम करने के लिए एक जगह मिली। जहां पर वह पेड़ की छांव के नीचे बैठ गए।
अजमेर में पृथ्वीराज चौहान का शासन था वहां पर जहां हसन बैठे थे कुछ सैनिकों ने आकर उन्हें उठाया और कहा कि यहां पर ऊंटों के बैठने का स्थान है। आप यहां से उठ जाइए ऐसा कह कर ख्वाजा गरीब नवाज और उनके साथियों को वहा से उठा दिया ख्वाजा गरीब नवाज और उनके साथियों को थोडा बुरा लगा और उन्होंने कहा कि अगर यह होठों के बैठने का स्थान है तो यहां पर तो ऊंटों को ही बैठाओ।
ऐसा कहकर वहां से वे चले गए और उस स्थान पर ऊँट बैठ गए। लेकिन उसके पश्चात ऊंट वहां पर बैठे ही रह गए और खड़े नहीं हो पाए। यह बात जब सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान को बताई तो यह सुनकर पृथ्वीराज चौहान हैरान हो गए। और उसी समय पृथ्वीराज चौहान के कहने पर सैनिकों ने ख्वाजा गरीब नवाज से माफी मांगी। ख्वाजा गरीब नवाज का चमत्कार देखकर कई हिंदुओं ने उस क्षेत्र में इस्लाम धर्म कबूल किया और अंत में 15 मार्च 1236 को ख्वाजा गरीब नवाज का देहांत हो गया।
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निष्कर्ष
आशा है या आर्टिकल आपको बहुत पसंद आया हुआ इस आर्टिकल में हमने बताया (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का इतिहास | khwaja garib nawaz ki kahani hindi me) के बारे मे संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप अपने दोस्तों के साथ भी Share कर सकते हैं अगर आपको कोई भी Question हो तो आप हमें Comment कर सकते हैं हम आपका जवाब देने की कोशिश करेंगे।
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